Special Report: बड़े पैमाने पर टेस्टिंग से ही बदलेगी सूरत

Special Report: बड़े पैमाने पर टेस्टिंग से ही बदलेगी सूरत

नरजिस हुसैन

10 अप्रैल को पंजाब दूसरा ऐसा राज्य बन गया था जिसने 14 अप्रैल तक चलने वाले देशव्यापी बंद या लॉकडाउन को 15 और दिनों के लिए अपने राज्य में लागू किया था। हालांकि सबसे पहले ओडीशा ने इस बात की घोषणा की थी। इन दो राज्यों के बाद से देश के अलग-अलग राज्यों में भी लॉक डाउन को आगे खिसकाने की बात हो रही है। जहां महाराष्ट्र में कोविड के मामले तेजी  से सामने आ रहे हैं वहीं दूसरी तरफ कई ऐसे भी राज्य है जो इस बात को लेकर कशमकश में हैं कि उनके राज्य में कोविड कहां से आया। इंडियन कांउसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के 36 जिलों में कोविड-19 से प्रभावित सिवीयर एक्यूट रेसपीरेटरी सिन्ड्रों (सार्स) वाले कुछ मरीजों पर अध्ययन के बाद अब कम्युनिटी ट्रांसमिशन का खतरा बढ़ने की अशंका जताई जा रही है। इन मरीजों ने न तो विदेश यात्रा की थी और न ही ये किसी कोविड संभावित मरीज के संपर्क में ही आए थे।

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इसी के बाद से अब केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने देश के सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को टेस्टिंग बढ़ाने और उसमें तेजी लाने के निर्देश जारी किए हैं। शुक्रवार यानी 10 अप्रैल को ही सभी राज्यों को 14 अप्रैल तक 2.5 लाख सैंपल इकट्ठा कर टेस्टिंग बढ़ाने को कहा गया है। उस वक्त तक देश में कोविड के 1.6 लाख टेस्ट ही हो पाए हैं। भारत को अब धीरे-धीरे अपनी टेस्टिंग बढ़ानी ही होगी हालांकि, विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्युएचओ ने भी इसकी हिदायत बहुत पहले ही दी थी। संगठन ने भारत सरकार को देश में तेजी से टेस्टिंग कराने का सुझाव दिया था। देश में अब यह जरूरी भी हो गया है कि सभी कोरोना हॉटस्पॉट में रहने वाले लोगों यह टेस्ट कराया जाए।

अब यहां यह बता दें कि कोरोना के कौन-कौन से टेस्ट हैं और ये कैसे होते हैं। कोरोना के दो ही टेस्ट होते है- पहला, एंटीबॉडी टेस्ट, जिसमें मरीज का एक खून का सैंपल लेकर उसे टेस्ट किया जाता है। 800 रुपए में होने वाले इस टेस्ट का नतीजा 20 मिनट में आता है। एफडीआई से स्वीकृत कोरोना के इस टेस्ट को बिना ट्रेनिंग का स्टाफ भी आराम से कर सकता है। एंटीबॉडी टेस्ट वायरस की शरीर में मौजूदगी 8-9 दिन में ठीक से कर पाता है। मतलब ये कि अगर आठ दिन से पहले ये टेस्ट कराया तो इस बात की कोई गारंटी नहीं कि टेस्ट बिल्कुल स्टीक नतीजा दे पाए। ये टेस्ट यह पता लगाता है कि शरीर में रोगों से लड़ने के लिए जो एंटीबॉडीज हैं वह कितने बेहतर तरीके से काम कर रहे हैं। यह टेस्ट कोई भी घर में डायबिटीज के टेस्ट की तरह ही खुद ही कर सकता है।

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दूसरा टेस्ट है- पीसीआर यानी पॉलीमेरस चेन रिएक्शन और एनएटी यानी नैट, यह टेस्ट मरीज के शरीर में सीधेतौर पर ये पता लगाता है कि दरअसल वायरस का फैलाव कितना हुआ है और उसके बाद डॉक्टर उसका इलाज करते हैं। इन दोनों ही टेस्ट में मरीज के गले और नाक से रूई के फाहे पर वायरस के कुछ नमूने लिए जाते हैं जिनकी लैब में जांच होती है। पीसीआर टेस्ट कोरोना टोस्ट करने का अब तक का सबसे मंहगा टेस्ट है जिसकी कीमत 4,500 रुपए है और जिसका नतीजा करीब 6 घंटे में आता है। इसका टेस्ट बड़ी लैब में और ट्रेंड लैब टेक्नीशियन ही करते हैं। अब है नैट टेस्ट, ये टेस्ट भी ठीक उसी तरह होता है जैसे कि पीसीआर लेकिन, यह पीसीआर से कम पैसे (1800 रु) में होता है और एक घंटे में ही नतीजा आ जाता है। नैट टेस्ट भी बिना किसी ट्रेनिंग के कोई भी कर सकता है। पीसीआर और नैट टेस्ट की खासियत ये है कि ये टेस्ट बिल्कुल स्टीक नतीजे देते हैं जिससे मरीज को फौरन इलाज और दवाइयों पर डाल दिया जाता है और उसके संपर्क में आए लोगों को भी फौरन क्वारेंटीन में रखा जाता है।

भारत में अब तक पीसीआर टेस्ट ही हो रहे थे। महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्रा प्रदेश के लगातार अनुरोध और कोविड के बढ़ते हुए मामलों को देखकर आईसीएमआर ने देश के सभी हॉटस्पॉट समेत पूरे देश में रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट कराने का सुझाव सरकार को दिया है। जानकारों का भी कहना है कि अगर किन्हीं जगहों पर अगर टेस्ट नहीं हो रहे हैं या कहीं अगर कोविड-19 के मरीजों की तादाद जीरो है तो इसका यह मतलब नहीं कि वहां वायरस है ही नहीं इसलिए शायद सरकार ने भी देश के उन 430 जिलो में भी टेस्ट कराने की इच्छा जताई है जहां से कोविड-19 की कोई खबर नहीं आई है। रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट पीसीआर टेस्ट से अलग है जिसमें खून का नमूना लेकर जांच की जाती है और 15-30 मिनट में उसका नतीजा भी बता दिया जाता है। भारत ने फिलहाल अलग-अलग देशों से ये किट खरीदनी शुरू कर दी है। हालांकि, अमेरिका, चीन और दक्षिण कोरिया से भारत पहले ही 5 लाख किट खरीद चुका है जो जल्द ही बाजार में मौजूद होगीं। बेंगलुरू की भी एक कंपनी यह किट बनाने के काम में जुट गई है और जल्दी ही प्रोडेक्ट बाजार में बेचेगी। 

एक और चिंता जो सरकार को परेशान कर रही है वह है फॉल्स नेगेटिव यानी कोरोना के किसी संभावित इंसान का टेस्ट हुआ, टेस्ट नेगेटिव आया लेकिन, कुछ दिन बाद उसमें कोरोना के लक्षण जाहिर होने लगे और इस बीच उसके संपर्क में कई लोग या कम-से-कम उसके परिवार वाले तो आए ही। डॉक्टर्स का मानना है कि संभावित मरीज के नाक और गले का सैंपल ठीक तरीके से लेने में चूक होना या पिर अक्सर इन दोनों ही जगहों पर वायरस का जमाव इतना नहीं होता जो जांच में आ जाए। मान लीजिए अगर वायरस तब तक फेफड़ों में चला गया और नाक से नमूना बाद में लिया गया तो वह नतीजा नेगेटिव ही आएगा। इससे डॉक्टर्स और मेडिकल कर्मियों को सही वक्त पर मरीजों की शिनाख्त करने में काफी वक्त लग रहा है क्योंकि कई बार शुरू की जांच में नेगेटिव आकर फिर बाद में पॉजिटिव आता है तो इलाज देर से शुरू होता है।

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हालांकि, इन सबसे अलग कोरोना वायरस का एक और टेस्ट भी है जिसे एंटीजेन टेस्ट कहते हैं ये टेस्ट वायरस में प्रोटीन के अंश का पता लगाता है और इसे एंटीबॉडी टेस्ट से पहले किया जा सकता था। एक पूलिंग टेस्ट भी होता है जो दुनिया के कई अलग-अलग देशों में किया गया। जिसमें लोगों के एक ग्रुप का खून का नमूना लेकर कम खर्च में टेस्ट किया जाता है अगर नतीजा पॉजिटिव आता है तो फिर दोबारा ग्रुप में सबकी अलग-अलग जांच की जाती है। और अगर जांच नेगेटिव आती है तो उन्हें सुरक्षित घोषित किया जाता है। मेडिकल विशेषज्ञों का मानना है कि पीसीआर टेस्ट ही फिलहाल इस वक्त सबसे ज्यादा जरूरी है। कुछेक का मानना है कि एंटीबॉडी और पीसीआर दोनों ही टेस्ट कम वक्त में सही नतीजे देने में कारगर हैं। बहरहाल, कौन सा टेस्ट कितना अच्छा है या नहीं इस बारे में एकराय नही बन पाई है क्योंकि कोरोना वायरस अपनेंआप में बिल्कुल नया है। जरूरत इस बात की है वैज्ञानिक, डॉक्टर्स और शोधकर्ता सब मिलकर बिना मतभेद के इस वायरस के खिलाफ एकजुट होकर काम करते रहे और इस दिशा में काम करने वाले संस्थानों को सरकार सहुलतों के अलावा कुछ और आजादी दे।

 

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